बीज उद्योग को आरएंडडी व्यय पर आयकर में 200 फीसदी छूट मिले: एफएसआईआई

नयी दिल्ली 17 जनवरी (वार्ता)। फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एफएसआईआई) ने बीज उद्योग को इन हाउस शोध एवं विकास (आरएंडडी) व्यय के लिए आयकर 200 प्रतिशत छूट देने की मांग की है।
एफएसआईआई ने आम बजट के मद्देनजर अपनी मांग रखते हुये कहा है कि इन हाउस आर एंड डी के लिए आयकर में छूट पहले से ही मिल रही है लेकिन अगले वर्ष के आम बजट में इसको बढ़ाकर 200 प्रतिशत किया जाना चाहिए। संगठन ने कहा कि एक अप्रैल 2017 से 31 मार्च 2020 तक इस मद में 150 प्रतिशत छूट मिल रही है लेकिन अब ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि इसको कम किया जा सकता है।
यह कानून उन कंपनियों पर लागू होता है, जो बायो-टेक्नॉलॉजी या फिर उस किसी भी उत्पाद के निर्माण एवं उत्पादन में संलग्न है, जिसमें वैज्ञानिक शोध के लिए खर्च (जमीन पर खर्च के अलावा) या फिर इन हाउस आरएंडडी पर व्यय किया जाना आवश्यक है, जिसकी अनुमति वैज्ञानिक एवं औद्योगिक शोध विभाग (डीएसआईआर) देता है।
एफएसआईआई के कार्यकारी निदेशक डॉ शिवेंद्र बजाज ने कहा कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत में आरएंडडी में निवेश काफी कम है और यह जीडीपी का मात्र 0.7 प्रतिशत है। इसको नजरंदाज नहीं किया जा सकता कि नई टेक्नॉलॉजी के विकास, इनोवेशन एवं पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को हासिल करने के लिए आर एंड डी बहुत महत्वपूर्ण है। सरकार को आर एंड डी में निवेश को प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि मौसम परिवर्तन, कम पैदावार, खाद्य उत्पादन में वृद्धि तथा देश में पोषण की जरूरत को पूरा करने की चुनौती का समाधान किया जा सके।
उन्होंने कहा कि चिली, अर्जेंटीना एवं दक्षिण अफ्रीका जैसे देश विश्व के बीज व्यापार में अग्रणी हैं और वे अच्छी गुणवत्ता के बीजों के आपूर्तिकर्ताओं के तौर पर स्वयं को स्थापित कर चुके हैं। भारत में भी एक विकसित बीज उद्योग, कृषि जलवायु की विविध परिस्थितियां, बीज उत्पादन की विशेषज्ञता एवं आवश्यक बुनियादी ढांचा है, जिसके बल पर हमारा देश भी विश्व में बीज निर्यात का केंद्र बन सकता है। इस समय देश से लगभग एक हजार करोड़ रुपये के बीज निर्यात होते हैं। दुनिया में बीज का कारोबार लगभग 14 अरब डॉलर का है जिसमें 2028 तक भारत का उद्देश्य इस कारोबार में कम से कम 10 प्रतिशत हिस्सेदारी का होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि भारत को निर्यात का केंद्र बनाने के लिए एफएसआईआई सरकार द्वारा एक सकारात्मक नीतिगत सहयोग की उम्मीद करता है। जीएम एवं गैर जीएम बीजों के कस्टम उत्पादन एवं निर्यात पर केंद्रित बीजों के उत्पादन में किस्मों को पंजीकरण से छूट मिलनी चाहिए, हालांकि घरेलू एवं निर्यात बाजारों के लिए उत्पादन किए जाने वाले बीजों के लिए पंजीकरण अनिवार्य होना चाहिए। भारत में निर्मित बीजों के निर्यात को बिना किसी विलंब के स्वतंत्र रूप से स्वीकृति मिलनी चाहिए और इन भारतीय किस्मों के निर्यात के लिए नेशनल बायोडाईवर्सिटी अथॉरिटी (एनबीए) से समयबद्ध अनुमति मिलनी चाहिए।
श्री बजाज ने कहा कि बीजों के निर्यात के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाई जानी चाहिए ताकि केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, एनबीए, जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रेज़ल कमिटी (जीईएसी) आदि के बीच प्रक्रिया सुगम हो सके। कृषि मंत्रालय के तहत एक विशेष कोष का गठन किया जाना चाहिए, जो निर्यात की अनुमति देने, आयात की अनुमति देने एवं पीआरए जैसे काम प्रभावशाली तरीके से करके निर्यात को प्रोत्साहित कर सके। केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, उद्योग, वैज्ञानिकों एवं अन्य हितधारकों के प्रतिनिधियों को मिलकार बीज निर्यात प्रोत्साहन परिषद का गठन किया जाना चाहिए।