पूंजी बाजार नियामक सेबी की एक समिति ने कंपनियों और उसके संबद्ध पक्षों के बीच लेन-देन से जुड़े नियमों में व्यापक बदलाव का प्रस्ताव करते हुये नियमों को सख्ती से लागू करने और उनकी निगरानी प्रणाली को मजबूत बनाये जाने पर जोर दिया है। समिति की सिफारिशों में संबद्ध पक्ष और संबद्ध पक्ष के बीच लेन-देन की परिभाषा में बदलाव और ऐसे सौदों के वर्गीकरण मामले में तय सीमा में संशोधन करना शामिल हैं। साथ ही समिति ने उन प्रक्रियाओं में बदलाव का सुझाव दिया है जिसका अनुकरण कंपनी की आडिट समिति संबद्ध पक्षों के बीच लेन-देन (आरपीटी) की मंजूरी के लिये करती है। इसके अलावा आरपीटी के बारे में शेयर बाजारों को सूचना देने के प्रारूप का भी सुझाव दिया गया है।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने नवंबर 2019 में आरपीटी से संबंधित नीति की समीक्षा के लिये कार्य समूह का गठन किया था।कोटक महिंद्रा कैपिटल कंपनी के प्रबंध निदेशक और सीईओ (मुख्य कार्यपालक अधिकारी) को इसका अध्यक्ष बनाया गया था। समूह ने 22 जनवरी को अपनी रिपोर्ट नियामक को सौंपी दी। रिपोर्ट पर लोगों से 27 फरवरी तक टिप्पणी मांगी गयी है।
प्रस्ताव के तहत संबंधित पक्ष कोई भी व्यक्ति या इकाई हो सकता है जो सूचीबद्ध इकाई प्रवर्तक या प्रवर्तक समूह से जुड़ा हो। इसके अलावा कोई व्यक्ति या इकाई जिसके पास प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से (अपने संबंधियों को लेकर) सूचीबद्ध इकाई में 20 प्रतिशत या अधिक हिस्सेदारी है, उसे भी संबद्ध पक्ष समझा जाना चाहिए। समिति ने सिफारिश की है कि सूचीबद्ध इकाइयों या उसकी अनुषंगी इकाइयों के संबद्ध पक्षों के साथ अगर कोई लेन-देन होता है तो उसके बारे में सूचीबद्ध इकाई की आडिट समिति की पहले से मंजूरी जरूरी होनी चाहिए।