भारतीय अभयारण्यों के लिए अफ्रीकी चीते लाने की सुप्रीम कोर्ट ने दी इजाजत

नई दिल्ली, 28 जनवरी (वार्ता)। उच्चतम न्यायालय ने भारतीय अभयारण्यों के लिए अफ्रीकी चीता लाने की मंगलवार को इजाजत दे दी।



मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की खंडपीठ ने कहा कि वह अफ्रीकी चीतों को नामीबिया से भारत लाकर मध्यप्रदेश स्थित नौरादेही वन्य जीव अभयारण्य में बसाने की महत्वाकांक्षी परियोजना के खिलाफ नहीं है। न्यायालय ने कहा कि बाघ-चीते के बीच टकराव के कोई सबूत रिकार्ड में नहीं हैं।



गौरतलब है कि देश से अब चीते लगभग समाप्त हो चुके हैं। 1948 में सरगुजा के जंगल में आखिरी बार चीता देखा गया था। अब केंद्र सरकार इस प्रजाति की पुनर्स्थापना की कोशिशों में लगी है।



वर्ष 2010 में केंद्र ने मध्य प्रदेश सरकार से चीता के लिए अभयारण्य तैयार करने को कहा था। वन विभाग ने पहले चीता प्रोजेक्ट के लिए कुनो पालपुर अभयारण्य का प्रस्ताव दिया था, लेकिन शीर्ष अदालत ने ऐसा करने से रोक दिया, क्योंकि कुनो पालपुर अभयारण्य को एशियाटिक लॉयन (बब्बर शेर) के लिए तैयार किया गया है। इसके बाद विभाग ने नौरादेही को चीता के लिए तैयार करना शुरू किया।



भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून ने इस प्रोजेक्ट के लिए कुनो पालपुर और नौरादेही अभयारण्य को चुना था। दोनों ही अभयारण्यों में लंबे खुले घास के मैदान हैं। चीता को शिकार करने के लिए छोटे वन्य प्राणी और लंबे खुले मैदान वाला क्षेत्र चाहिए। उन्हें छिपने के लिए घास की जरूरत होती है। विभाग ने नौरादेही से 10 गांव हटाकर यह आवश्यकता पूरी कर दी है।