चित्रकार बनना चाहती थी पॉप संगीत की ‘क्वीन’ उषा उत्थुप


नयी दिल्ली 10 जनवरी  भारतीय पॉप संगीत की ‘क्वीन’ उषा उत्थुप चित्रकार बनाना चाहती थीं लेकिन किस्मत ने उन्हें गायिका बना दिया और उन्होंने लोकप्रियता के सारे रिकाॅर्ड तोड़ते हुए संयुक्त राष्ट्र के मंच से गाकर देश का नाम रौशन किया।

आठ नबम्बर 1947 में तमिलनाडु में जन्मीं उषा उत्थुप को शुरू में बहुत संघर्ष करना पड़ा और सिलाई का काम करके उन्होंने गुजर-बसर किया। उन्हें प्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेता राजेन्द्र कुमार की पत्नी से 80 रुपये सिलाई के मिलते थे।

वरिष्ठ पत्रकार विकास कुमार झा ने उषा उत्थुप की रोचक जीवनी लिखी है जिस पर आज विश्व पुस्तक मेले में चर्चा आयोजित है। इसमे उषा भाग ले रही हैं। सोलह भारतीय भाषाओं और दस से अधिक विदेशी भाषाओं में पॉप गीत गाने वाली उषा को ख्याति 1970 में देवानंद की फ़िल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ से मिली और ‘हरी ओम हरि’, रम्भा हो-हो तथा जीते हैं शान से मरते हैं शान से जैसे लोकप्रिय गाने घर घर मे बजने लगे। युवा पीढी उनकी दीवानी हो गई।

श्री झा ने लिखा है कि उषा उत्थुप जिनका असली नाम उषा अय्यर था ,ने 1965 में स्कूल पास करने के बाद मुंबई में देश के नामी गिरामी आर्ट काॅलेज जे जे स्कूल ऑफ आर्ट में दाखिला लिया और वह अमृता शेरगिल की तरह चित्रकार बनना चाहती थीं। वह हुसैन स्वामीनाथन सुज़ा जैसे चित्रकारों से प्रभावित थी और सौ रुपए में कार्ड बनाकर अपना खर्चा निकलती थी लेकिन बाद में वह निजी संगीत बैंड में शो देने लगी फिर जिंगल गाने लगी और 1970 में बॉम्बे टॉकी नामक फ़िल्म में दो अंग्रेजी गाने गाए।

हिंदी फिल्म में उन्हें ब्रेक ‘कभी धूप कभी छांव’ फ़िल्म से मिला। इसके बाद वह सफलता की सीढ़ियां चढ़ती गईं और उनके शो में बहुत भीड़ उमड़ने लगी। उन पर अश्लीन गाना गाने के आरोप लगे। पश्चिम बंगाल सरकार ने उनके शो पर रोक लगा दी तब अदालत से उन्हें गाने की अनुमति मिली।

उन्होंने हिंदी में कुल 24 ही पॉप गीत गाये पर दूसरी भाषाओं में अनेक गीत गाने गाए। वह इतनी लोकप्रिय हुईं की संयुक्त राष्ट्र में भी उनका शो हुआ। रोम के पोप ने भी उनको आशीर्वाद दिया था।