महिलाओं के लिए फिल्मी दुनिया का मार्ग प्रशस्त किया दुर्गा खोटे ने


(जन्मदिवस 14 जनवरी के अवसर पर )

मुम्बई 14 जनवरी (वार्ता)भारतीय सिनेमा जगत में दुर्गा खोटे को एक ऐसी अभिनेत्री के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने महिलाओं को फिल्म इंडस्ट्री में काम करने का मार्ग प्रशस्त किया।
दुर्गा खोटे जिस समय फिल्मों में आयी उन दिनों फिल्मों में काम करने से पहले पुरष ही स्त्री पात्र का भी अभिनय किया करते थे। उन्होंने फिल्मों में काम करने का फैसला किया और इसके बाद से हीं सम्मानित परिवारों की लड़कियां और महिलाएं फिल्मों में काम करने लगीं।
चौदह जनवरी 1905 को मुंबई में जन्मीं दुर्गा खोटे ने वर्ष 1931 में प्रदर्शित प्रभात फिल्म कम्पनी की मूक फिल्म ‘फरेबी जाल’ में छोटी -सी भूमिका से अपने फिल्मी कैरियर की शुरआत की। इसके बाद दुर्गा खोटे ने व्ही शांताराम की मराठी फिल्म ‘अयोध्येचा राजा’(1932)में काम किया। इस फिल्म में दुर्गा खोटे ने रानी तारामती की भूमिका निभायी।
अयोध्येचा राजा मराठी में बनी पहली सवाक फिल्म थी। इस फिल्म की सफलता के बाद दुर्गा खोटे बतौर अभिनेत्री अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गयीं। इसके बाद प्रभात फिल्म कंपनी की ही वर्ष 1932 में प्रदर्शित फिल्म माया मछिन्द्र ने दुर्गा खोटे ने एक बहादुर योद्धा की भूमिका निभायी। इसके लिए उन्होंने योद्धा के कपडे पहने और हाथ में तलवार पकड़ी।
वर्ष 1934 में कलकत्ता की ईस्ट इंडिया फिल्म कंपनी ने ‘सीता’ फिल्म का निर्माण किया जिसमें दुर्गा खोटे के नायक पृथ्वीराज कपूर थे। देवकी कुमार बोस निर्देशित इस फिल्म में उनके दमदार अभिनय ने उन्हें शीर्ष अभिनेत्रियों की कतार में खड़ा कर दिया। प्रभात फिल्म कंपनी की वर्ष 1936 में बनी फिल्म ‘अमर ज्योति’ से दुर्गा खोटे का काफी ख्याति मिली।
फिल्मों में काम करना दुर्गा खोटे मजबूरी भी थी। वह जब महज 26 साल की थी तभी उनके पहले पति विश्वनाथ खोटे का निधन हो गया। परिवार चलाने और बच्चों की परवरिश के लिये उन्होंने फिल्मों में काम करना जारी रखा। बाद में उन्होंने मोहम्मद राशिद नाम के व्यक्ति से दूसरा विवाह किया लेकिन उनके साथ गृहस्थी ज्यादा दिन नहीं चल पाई। इस बीच उनके छोटे बेटे हरिन का भी देहांत हो गया ।
दुर्गा खोटे ने 1937 में फिल्म ‘साथी’ का निर्माण और निर्देशन किया। इंडियन पीपुल्स थियेटर एसोसिएशन (इप्टा) से जुडी रहीं। वह फिल्मों के साथ रंगमंच विशेषकर मराठी रंगमंच पर भी कई वर्षों तक सक्रिय रहीं।
दुर्गा खोटे ने नायिका के बाद मां की भूमिकाएं भी कई फिल्मों में निभायीं। के. आसिफ की ‘मुगले आजम’(1960) में रानी जोधाबाई के उनके किरदार को दर्शक आज तक नहीं भूल पाए हैं। इसके अलावा उन्होंने विजय भट्ट
की क्लासिक फिल्म ‘भरत मिलाप’(1942) में कैकेयी की यादगार भूमिका निभायी थी ।दुर्गा खोटे ने मुम्बई मराठी साहित्य संघ के लिए कई नाटकों में काम किया। शेक्सपीयर के मशहूर नाटक मैकबेथ के वी. वी.शिरवाडकर द्वारा ‘राजमुकुट’ नाम से किए गए मराठी रूपांतरण में उन्होंने लेडी मैकबेथ का किरदार निभाया था जो काफी चर्चित रहा था। उन्होंने अपने पांच दशक से भी अधिक लंबे कैरियर में हिन्दी और मराठी की लगभग 200 फिल्मों में काम किया। इसके अलावा उन्होंने अपनी कंपनी फैक्ट फिल्म्स और फिर दुर्गा खोटे प्रोक्डशंस के बैनर तले 30 साल से अधिक समय तक कई लघु फिल्मों, विज्ञापन फिल्मों,वृत्तचित्रों और धारावाहिकों का निर्माण भी किया। छोटे पर्दे के लिये उनका बनाया गया सीरियल ‘वागले की दुनिया’ दर्शकों में काफी लोकप्रिय हुआ था।
दुर्गा खोटे ने ‘मी दुर्गा खोटे’ नाम से मराठी भाषा में अपनी आत्मकथा भी लिखी जो काफी चर्चित रही। बाद में ‘आई दुर्गा खोटे’ नाम से इसका अंग्रेजी अनुवाद भी किया गया ।
भारतीय सिनेमा में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें 1983 में सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया । वर्ष 1968 में दुर्गा खोटे को पदमश्री से नवाजा गया। अपने दमदार अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध करने वाली महान अभिनेत्री 22 सितम्बर 1991 को इस दुनिया को अलविदा कह गयीं।