सीतारमण के समक्ष वास्तविकता और उम्मीदों के बीच तालमेल बनाने की बड़ी चुनौती

नयी दिल्ली 31 जनवरी (वार्ता)। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पर आम बजट में आम लोगों तथा वेतनभोगियों को खुश करने और उद्योग जगत को राहत पहुँचाते हुये मंद पड़ी अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए माँग, निजी निवेश और राजस्व संग्रह में वृद्धि के उपाय करते हुये सरकारी व्यय बढ़ाने के साथ ही राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखने की बड़ी चुनौती होगी।
श्रीमती सीतारमण वित्त मंत्री के तौर पर अपना पहला पूर्ण बजट 01 फरवरी को पेश करेंगी। वह ऐसे समय में यह बजट पेश करने जा रही हैं जब अार्थिक गतिविधयाँ छह वर्ष के निचले स्तर पर आ चुकी हैं और खुदरा महँगाई पाँच वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुँच चुकी है। ऐसे में उनके लिए वास्तविकता और बजट को लेकर उम्मीदों के बीच तालमेल बनाना चुनौतीपूर्ण होगा।
आर्थिक गतिविधियों को पटरी पर लाकर वर्ष 2024-25 तक पाँच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए लोगों, विशेषकर मध्यम वर्ग, की क्रय शक्ति को बढ़ाने के उद्देश्य से आयकर में बड़ी राहत दिये जाने की उम्मीद है लेकिन इससे राजस्व संग्रह प्रभावित हो सकता है। विश्लेषक ऐसी उम्मीद कर रहे हैं कि वित्त मंत्री कॉरपोरेट कर में कमी की तर्ज पर आयकर में भी छूट देकर लोगों की क्रय शक्ति को बढ़ा सकती हैं। उनका कहना है कि ढाई लाख रुपये से लेकर पाँच लाख रुपये तक के पहले स्लैब पर कर की दर पाँच फीसदी बनी रह सकती है, लेकिन पाँच लाख रुपये से 10 लाख रुपये तक की आय पर कर को 20 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी किया जा सकता है। इसी तरह 10 लाख रुपये से 25 लाख रुपये तक की सालाना आय पर कर को भी 30 प्रतिशत से कम कर 20 प्रतिशत किया जा सकता है।
कुछ अर्थशास्त्रियों ने 25 लाख रुपये से एक करोड़ रुपये तक की आय पर कर को 25 प्रतिशत रखने की वकालत करते हुये कहा है कि एक करोड़ से अधिक की आय पर 30 फीसदी कर लगाया जाना चाहिये क्योंकि इतनी आमदनी वाले लोग ज्यादा कर दे सकते हैं। उन्होंने अमीरों पर आयकर पर लगे अधिभार को समाप्त करने की अपील करते हुये कहा है कि सरकार कर की दर जितना अधिक रखती है, कर संग्रह उतना ही कम होता है।