CAA और 370 की घोषणा अपने हनुमान से कराने वाले मोदी श्रीराम के लिए खुद क्यों आए सामने?


जम्मू कश्मीर पर सरकार के लिए गए फैसले के बाद से देश की अपेक्षाएं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से और भी बढ़ गई हैं। ऐसे में लोगों के जेहन में यह सवाल है कि तीन तलाक और अनुछेद 370 के बाद क्या अगला निशाना राम मंदिर होगा। जब देश का कप्तान ऐसा हो तो बड़ी से बड़ी जंग में जीत पक्की है। कुछ करने का जज्बा और हौसला जब प्रधानमंत्री मोदी जैसा हो तो कुछ भी असंभव नहीं। देश को आजाद हुए 72 साल हो रहे हैं लेकिन अब तक ऐसा जिगर वाला प्रधानमंत्री किसी ने नहीं देखा। जिन विषयों को किसी ने छूने की हिम्मत नहीं दिखाई, जिन मसलों की तरफ राजनीतिक पार्टियां आंखे मूंदे रही, उन मसलों की फाइल मोदी ने न सिर्फ खोली बल्कि उसे मुकाम तक पहुंचाया। 




देश की सत्ता में दूसरी बार विराजमान मोदी सरकार अपने चुनावी घोषणा पत्र में किए गए वादों को लगातार अमलीजामा पहना रही है। बीजेपी ने 2019 के चुनावी घोषणा पत्र में जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 हटाने, नागरिकता संशोधन कानून लाने और तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाने का वादा किया था। यही वजह रही कि मोदी सरकार सत्ता में आने के बाद पहले ही वर्ष में तीनों बड़े वादे पूरे करने के साथ-साथ आतंकवाद पर नकेल कसने के लिए यूएपीए और एसपीजी संशोधन बिल को पास कराने में कामयाब रही है। इन सारे कवायदों को पूरा करने के क्रम में बिल या संशोधन को सदन में पेश करने से लेकर पास कराने तक की जिम्मेदारी गृह मंत्री अमित शाह ने निभाई और सफलता पूर्वक उसे अंजाम तक भी पहुंचाया। राम मंदिर का जिक्र जब भी राजनीति में आता है तो धर्म और आस्था के साथ राम राज्य के आने का जिक्र भी होता रहा है। उसी राम मंदिर के निर्माण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के 87 दिन बाद राम मंदिर निर्माण की रूपरेखा तैयार हो चुकी है। लोकसभा में राम मंदिर जन्मभूमि ट्रस्ट का ऐलान हो गया। तीन तलाक, अनुच्छेद 370 और सीएए की तरह गृह मंत्री अमित शाह को इस बार इस ऐलान का मौका नहीं मिला। पीएम मोदी ने संसद में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाने की घोषणा की और नाम रखा 'श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र'। अयोध्या और भारतीय जनता पार्टी का राजनीतिक संबंध भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ है। उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश भर में भारतीय जनता पार्टी को राजनीतिक पहचान दिलाने में अयोध्या और राम मंदिर की कितनी भूमिका रही है इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि 1991 में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की जब पहली बार कल्याण सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी थी तो पूरा मंत्रिमंडल शपथ लेने के तत्काल बाद अयोध्या में रामलला के दर्शन के लिए आया था। इतना ही नहीं, पिछले साल उत्तर प्रदेश में जब से योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार बनी है तब से अयोध्या के विकास के लिए न सिर्फ़ तमाम घोषणाएं की गईं बल्कि दीपावली के मौक़े पर भव्य कार्यक्रम और दीपोत्सव का आयोजन भी किया गया। 


साल 2014 में आयोजित धर्म संसद में भी संघ की तरफ से कहा गया था कि नरेंद्र मोदी को जनता चुने और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण का रास्ता प्रस्सत होगा। वहीं साल 2019 में जब दोबारा राम मंदिर आंदोलन की सुगबुगाहट दोबारा शुरू होने वाली थी तो ये बी खबर थी कि नरेंद्र मोदी के आग्रह पर ही इसे चुनाव तक टाल दिया गया था। मतलब साफ है कि देश के साथ ही धर्म संसद और अयोध्या के साधु-संत और इस आंदोलन से जुड़ें लोगों को भी मोदी पर पूरा विश्वास था। 


लेकिन एक बात जो अक्सर वाराणसी से सांसद और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर कही जाती रही कि वो वाराणसी की बार-बार यात्रा करते रहे और अन्य शहरों में भी जाते रहें, कबीर की समाधि स्थली मगहर तक चले गए लेकिन अयोध्या कभी नहीं गए। वहीं, अयोध्या जिसे राजनीतिक हलकों में बीजेपी की 'प्राणवायु' समझा जाता रहा है। यहां तक कि 11 मई 2018 को नेपाल के जनकपुर से अयोध्या और अयोध्या से जनकपुर बस सेवा की शुरुआत नेपाल जाकर की। राम मंदिर का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में होने के दौरान प्रधानमंत्री द्वारा इसकी चर्चा कभी भी सार्वजनिक या निजी रूप से देखने को नहीं मिली। यहां तक की बीजेपी के बड़बोले नेताओं को पीएम ने इस मुद्दे पर बयानबाजी से बचने की कड़ी नसीहत भी दी। पीएम मोदी जिनके राष्ट्रीय राजनीति में आने के बाद बतौर गुजरात में मुख्यमंत्री रहते उनकी बनी छवि से इतर विकास पुरूष के तौर पर स्थापित होती रही है। साथ ही उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में मामला होने की वजह से पीएम मोदी अयोध्या की यात्रा से भी बचते रहे।


लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इसका स्वागत करना हो या फिर लोकसभा में राम मंदिर ट्रस्ट के गठन की घोषणा के लिए खुद आगे आना हो मोदी पीछे नहीं हटे। जिसके पीछे की एक बड़ी वजह ये भी है कि 90 के दशक में लालकृष्ण आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या यात्रा के सारथी मोदी का श्रीराम मंदिर आंदोलन से भावनात्मक लगाव भी रहा है जो अब तक न्यायपालिका में मामला होने की वजह से उनके मन के अंदर ही था। लेकिन फैसला आने के बाद अयोध्या अब हसरत भरी निगाहों से देख रहा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने अयोध्या के विकास की संभावना को खुला आसमान दे दिया है। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए गठित किया जाने वाला ट्रस्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छा के अनुरूप भारतीयता और भाईचारे का संदेश देने वाला होगा। दुनिया में ईसाई धर्म के 230 करोड़ अनुयायी हैं। और उनका सबसे बड़ा धार्मिक स्थल वैटिकन में मौजूद सेंट पीटर बेसिलिका है। इसका परिसर करीब 108 एकड़ में है। इसी तरह सऊदी अरब के मक्का में मुसलमानों का सबसे बड़ा पवित्र धर्मस्थल है। इस धर्म को विश्व में 180 करोड़ लोग मानते हैं। इसी तरह अब राम मंदिर के निर्माण का अयोध्या को इंतजार है। रामनवमी को राम मंदिर निर्माण की शुरूआत होने की संभावना जताई जा रही है और साथ ही पीएम मोदी की पहले अयोध्या यात्रा की भी।