नयी दिल्ली 13 फरवरी (वार्ता)। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक अशोक कुमार सिंह ने बासमती धान पर अनुसंधान तेज करने की जरुरत पर बल देते हुये गुरुवार को कहा कि वर्ष 2018-19 के दौरान देश को बासमती चावल के निर्यात से 32800 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त हुयी ।
डा सिंह ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि देश से पूसा बासमती 1121 किस्म की चावल का निर्यात सबसे अधिक किया जाता है । इसके अलावा पूसा बासमती 1509 , पूसा बासमती 1718, पूसा बासमती 1637 आदि की खेती 15 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है । पूसा की विकसित धान की किस्मों से तैयार चावल के निर्यात से देश को 28000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त हुयी थी ।
डा सिंह ने कहा कि बासमती किस्म के धान की ऐसी किस्मों पर अनुसंधान किया जा रहा है जिसमें सिंचाई की कम जरुरत होगी , लागत भी कम आयेगी तथा पैदावार भी भरपूर होगा । उन्होंने कहा कि धान की कुछ नयी किस्मों को जल्दी ही जारी किया जायेगा ।
धान की अधिकांश किस्में 150 दिनों में तैयार होती हैं । किसान धान के खेत में तुरंत गेहूं की फसल लेना चाहते हैं जिसके कारण वे पराली को खेत में जला देते हैं जिससे प्रदूषण की समस्या होती है। ऐसा समय पर गेहूं की फसल लगाने के लिये किसान करते हैं ताकि वे गेहूं की भरपूर फसल ले सकें। गेहूं लगाने में देर से उसका उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित होता है ।
डा सिंह ने बताया कि धान की ऐसी किस्मों पर अनुसंधान किया जा रहा है जो 150 दिनों की बजाय 130 दिनों में तैयार हो जाये ताकि किसानों को गेहूं लगाने के लिये पर्याप्त समय मिल सके। इन किस्मों में लम्बी अवधि के धान की तरह भरपूर पैदावार होगी और पानी की कम जरुरत के साथ ही इसकी खेती की लागत भी कम होगी ।
उन्होंने कहा कि पराली को जल्दी सड़ाने गलाने के लिये पूसा डी कम्पोजर तैयार किया गया है जिसके छिड़काव और बाद में उसे मिट्टी में आसानी से मिलाया जा सकता है ।
चावल के निर्यात से 32800 करोड़ की विदेशी मुद्रा अर्जित