इतनी हायतौबा क्यों ? यही एजेंडा तो है आरएसएस-भाजपा का
 
















नई दिल्ली। मुझे बड़ा हास्यास्पद लगता है जब कोई विपक्ष का नेता, लेखक या पत्रकार यह कहता है या फिर लिखता है कि मोदी सरकार अराजकता फैला रही है, मुस्लिमों को टारगेट बना रही है। पुलिस से एकतरफा कार्रवाई करा रही है। उस नेता की भी बात पर हंसी आती है जो यह कहता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह देश को गुजरात बना देना चाहते हैं। गुजरात से उनका मतलब दंगों वाले गुजरात से होता है। अरे भाई जो देश में हो रहा है, इसमें आश्चर्य की बात क्या है ?  आरएसएस का तो यही एजेंडा रहा है और मोदी सरकार भी आरएसएस के एजेंडे पर ही तो काम कर रही है। आजादी की लड़ाई में आरएसएस पर अंग्रेजों का साथ देने का आरोप ऐसा ही थोड़े लगता है। आरएसएस के लोग तो खुलेआम कहते हैं कि अंग्रेजों ने ही तो भारत से मुगल शासन को खत्म किया है। यही सब बात है कि ये लोग अंग्रेजी शासन की तारीफ करते देखे जाते हैं। महारानी विक्टोरिया को श्रद्धांजलि अर्पित करते देखे जाते हैं। भारत छोड़ो आंदोलन में तिरंगे को जलाने का आरोप भी आरएसएस पर इसी कड़ी में लगता है। आरएसएस कितने भी चोले बदल ले पर यह सर्वविदित है कि  हमेशा ही उसका हिन्दू राष्ट्र सपना रहा है। हिन्दुत्व उसकी सोच है। यदि भाजपा या फिर उसके सहयोगी दल देश में मनमानी कर रहे हैं तो इसकी वजह यह है कि ये लोग प्रचंड बहुमत वाली सरकार में बैठकर देश को चला रहे हैं । जब भाजपा अपने मातृ संगठन आरएसएस के पदचिह्नों पर चलती है और आरएसएस का एजेंडा हिन्दू राष्ट्र है। इस विचारधारा पर चलते हुए यदि जनता ने भाजपा को सत्ता सौंपी है तो ये लोग तो यह सब कुछ करेंगे ही। मोदी की पहली सरकार तो मानी जा सकती है कि लोग गुजरात मॉडल के नाम पर भ्रमित हुए। दूसरी बार की सरकार में तो  भाजपा का एजेंडा स्पष्ट था। पहले कार्यकाल में कितने मामले मॉब लिंचिंग के हुए। भगवा दल ने एक विशेष तबके पर अपना पूरा पराक्रम दिखाया। मोदी सराकर के पहले कार्यकाल में किसानों से लेकर हर वर्ग के कितने आंदोलन हुए। मोदी सरकार पर कितने आरोप लगे। देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में दलितों के वोटों पर मजबूत पकड़ बनाये रखने वाली बसपा और यादव व मुस्लिमों वोटों पर एकाधिकार समझने वाली सपा का गठबंधन भी हुआ।  इन सबके बावजूद यदि मोदी सरकार दूसरी बार प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई तो लोगों को मोदी सरकार का एजेंडा स्पष्ट हो जाना चाहिए। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह आरएसएस के एजेंडे को पूरी तरह से लागू करने में लगे हैं। गली-गली में शाखा लगना और जगह-जगह जय श्रीराम के नारे गूंजना एक संयोग नहीं बल्कि प्रयोग के रूप में देखा जाना चाहिए।  देश में जो नफरत का जो माहौल बना है इसके लिए सत्ता पक्ष से कहीं कम जिम्मेदार विपक्ष नहीं है। विशेष रूप से अपने को समाजवादी कहने वाले।  एक विशेष धर्म की पैरवी को ही इन लोगों ने धर्मनिरपेक्ष समझ लिया। यदि आज भाजपा के नेतृत्व में एनडीए की सरकार देश में चल रही है तो इसके लिए अपने को लोहिया का अनुयाई बताने वाले ज्यादा नेता जिम्मेदार हैं।
गैर कांग्रेसवाद का नारा तो डॉ. लोहिया ने दिया था। मतलब कांग्रेस की गलत नीतियों के खिलाफ मोर्चा समाजवादियों ने खोला था और उसका परिणाम भी निकला। जेपी क्रांति के बाद 1977 में प्रचंड बहुमत के साथ समाजवादियों की अगुआई में जनता पार्टी की सरकार बनी। क्यों प्रचंड बहुमत की सरकार तितर-बितर हो गई ? क्यों इंदिरा गांधी को गिरफ्तार कराने  वाले तत्कालीन गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस का समर्थन लेकर जनता पार्टी तोड़ कर अपनी सरकार बना ली ? क्यों इंदिरा गांधी को हराने वाले राज नारायण सिंह संजय सिंह की बातों में आ गये ? क्यों समाजवादियों ने जनता पार्टी में शमिल हुए जनसंघ को भाजपा बनाने का मौका दिया ? क्यों चंद्रशेखर ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई ? क्यों लालू प्रसाद कांग्रेस की मदद से रेलवे मंत्री ? क्यों कांग्रेस की मदद से देवगौड़ा सरकार बनी ? क्यों मुलायम सिंह यादव कांग्रेस की मदद से देवगौड़ा सरकार में रक्षामंत्री बने। मतलब जो नारा लोहिया ने कांग्रेस के खिलाफ दिया था, उस नारे को लोहिया के अनुयायी सत्ता के लिए कमजोर करने में लगे गये। मतलब कांग्रेस के खिलाफ लड़ने के बजाय उसे मजबूती प्रदान करते रहे। भाजपा का एजेंंडा गलत हो या फिर सही उसने अपने एजेंडे को नहीं छोड़ा। अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी की अगुआई में भाजपा कांग्रेस से टकराती रही।  यह क्षेत्रीय दलों की सत्तालोलुपता और भ्रष्टचार में लिप्तता ही रही कि आज मोदी सरकार ने सपा, बसपा, रालोद, इनेलो, रालोद जैसे संगठनों को हाशिये पर धकेल दिया है। अब जब आरएसएस और भाजपा को नरेंद्र मोदी के रूप में तुरुप का इक्का मिला हुआ है तो  ये लोग तो उसे भुनाएंगे ही। अटल बिहारी वाजपेयी, राजानथ सिंह और सुषमा स्वराज में सोशलिस्ट टच रहा है तो ये लोग भाईचारे भी ध्यान देते रहे हैं। अमित शाह और नरेन्द्र मोदी तो लाल कृष्ण आडवाणी के तैयार किये गये कट्टरवादी नेता हैं, जो अपना काम कर रहे हैं। जो हुआ वह तो हुआ ही। चिंता इस बात की करनी चाहिए जो आगे होने वाला है । क्षेत्रीय दल अपनी कमियों की वजह से मोदी सरकार के डर से बिलों में घुस गये हैं।  कांग्रेस की छवि तो लोगों की नजरों में पहले से ही खराब है। इक्का-दुक्का जो संगठन या फिर नेता, सोशल एक्टिविस्ट, पत्रकार या फिर लेखक अपने बलबूते पर मोदी सरकार के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं उनसे स्थापित विपक्ष के नेता अपने को असुरक्षित समझते हुए उन्हें बढ़ावा देने को तैयार नहीं। मतलब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह खुलकर अपना खेल खेल रहे हैं। यही सब वजह है कि इस जोड़ी ने संविधान के स्तंभ कार्यपालिका, विधायिका मीडिया और न्यायापालिका तक को कब्जा लिया है।  यह बात विपक्ष और उनके समर्थकों को समझ लेनी चाहिए कि परिवारवाद और दूसरे के नाम पर स्थापित नेताओं के बस की बात मोदी और अमित शाह नहीं है। जब तक लोहिया और जेपी जैसा तपा हुआ नेतृत्व देश में उभरकर नहीं आएगा तब तक इन लोगों पर अंकुश पा लेने की बात करना बेमानी है।
 

 


 



 



 















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