नई दिल्ली। जिस देश में पड़ोसी के भूखे सोने पर पर भी पाप समझा जाता है। जिस देश में एक-दूसरे के दुख दर्द में लोग हर दम खड़े रहते थे। चिस देश में रोजी-रोटी सर्वोपरि थी। उस देश में आज धर्म और जाति के आधार पर भावनात्मक मुद्दे हावी हैं। राजनीतिक दलों ने देश में हिन्दू-मुस्लिम, दलित-पिछड़े और सवर्ण को लेकर इतनी नफरत में समाज में घोल दी है कि आज की तारीख में किसी को न तो देश की चिंता है और न ही समाज की। इस हालात का सबसे अधिक खामियाजा देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले किसान-मजदूर हैं। यह अपने आप में दिलचस्प है कि देश की आर्थिक राजधानी वाले प्रदेश में किसान और मजदूर के हालात सबसे अधिक भयावह हैं।
जिस महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई के भरोसे भारत 5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी के लक्ष्य का दावा कर रहा है उसी महाराष्ट्र में किसान और मजदूर की हालत बद से बदतर होती जा रही है। आम सुविधाएं तो दूर की बात है, इन्हें दो वक्त की रोटी के लिए एक से बढ़कर एक समझौता करना पड़ रहा है। हालात यह है किसी समय महाराष्ट्र की शान समझे जाने वाले मराठवाड़ा में किसानों ने देश के सभी राज्यों के क्षेत्रों से ज्यादा आत्महत्या की हैं। अब तो हालात इससे भी डरावने हो गये हैं। मराठावाड़ा में खेतों में काम करने वाली हजारों महिलाओं के गर्भाश्य निकलवा देने की बातें सामने आ रही हैं। ऐसा बताया जा रहा है कि महावारी के समय दिहाड़ी कटने की डर से इन महिलाओं पेट से अपने गर्भाश्य निकलवा दिये हैं।
महाराष्ट्र सरकार के एक मंत्री ने यह मुद्दा उठाया है। उन्होंने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है। दरअसल आर्थिक तंगी के चलते यहां महिलाएं पुरुषों के साथ खेतों पर काम करने के लिए जाती हैं। मासिक धर्म के दौरान छुट्टी लेने की वजह से इन महिलाओं की हर महीने 4-5 दिन की दिहाड़ी कट जाती थी। अपने पेट से गर्भाश्य निकालने वाली महिलाओं की संख्या लगभग 30,000 के आसपास बताई जा रही है। महाराष्ट्र की स्थिति अपने आप में अनोखी है। इसी प्रदेश की राजधानी में देश के समसे अधिक सम्पन्न लोग रहते हैं।
देश के पूंजीपतियों से लेकर बालीवुड की हस्तियां महाराष्ट्र में ही निवास करती हैं। वहीं इसी महाराष्ट्र वह मराठावाड़ा क्षेत्र जो खेती के नाम से मशहूर है। जो क्षेत्र किसानों और मजदूर की अथाह मेहनत के बल पर इस न केवल इस प्रदेश बल्कि दूसरे प्रदेशों के लोगों का भी पेट भरता है उसी क्षेत्र के वही किसान-मजदूर मरने के लिए मजबूर हैं। स्थिति यह है कि देश में सबसे अधिक किसानों ने आत्महत्या मराठावाड़ा क्षेत्र में की है। हालात यहां तक पहुंच गये हंै कि अब तो किसानों के परिजन भी आत्महत्या करने लगे हैं। गत दिनों सूखे के लिए कुख्यात महाराष्ट्र के लातूर जिले में 17 साल के एक छात्र ने इसलिए फांसी लगा कर अपनी जान दे दी क्योंकि उसको आर्थिक तंगी के चलते फीस और खर्च के लिए पैसे नहीं मिल पा रहे थे।
गत महीने आई नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (हृष्टक्रक्च) की 2016 की 'एक्सिडेंटल डेथ एंड सुसाइडÓ की रिपोर्ट के अनुसार 2016 में देश में 11,379 किसानों ने आत्महत्या की है। इसमें से 3,661 किसान महाराष्ट्र से थे। अगर 2016 के ही आंकड़ों को आधार माने तो औसतन रोज 10 किसान महाराष्ट्र में मौत को गले लगा रहे हैं। जबकि बहुत सारे केस सरकार की किसान आत्महत्या की परिधि में नहीं आए, साथ ही किसानों के बेटे-बेटियों की मौत को कृषि संकट में गिना नहीं जाता। हाल यह है कि किसानों की आर्थिक तंगी को देखते हुए उनके बच्चे10वीं-12वीं के बाद पढ़ाई छोड़कर मुंबई और पुणे में मजदूरी करने के लिए चले जा रहे हैं। कुछ समय पहले लातूर जिले की चाकूर तहसील में एक छात्रा ने आत्महत्या की थी।
महाराष्ट्र के परभणी जिले के पाथरी में किसान ने आत्महत्या की। उसके तुरंत बाद उसके भाई की बेटी ने आत्महत्या कर ली और चि_ी में लिखा कि मुझे डर है कि कहीं आप भी चाचा की तरह मेरी शादी के खर्च के डर से आत्महत्या न कर लें। चुनावी घोषणा पत्र में तो सभी राजनीतिक दल ऐसा दर्शाते हैं कि जैसे सरकार बनने पर वह किसानों को माल लुटवा देंगे। सरकारें भी बजट में ऐसा दिखाती हैं कि जैसे वे किसानों को देश लूटवा दे रहे हैं। अब तक काफी संपन्न लोग किसानों को मिलने वाली सब्सिडी पर उंगली उठाने लगे हैं। जमीनी हकीकत यह है कि किसान की स्थिति उसके खेत और घर पर जाकर पता चलती है। देश को कितने आगे बढ़ने के दावे केंद्र व राज्य सरकारें कर ही कर रही हों पर किसान-मजदूर की हालत और खराब होती जा रही है। दरअसल कई वर्षांे से पानी की किल्लत झेल रहे मराठवाड़ा में ज्यादातर किसानों के पास लैंड होर्डिंग कम है। कज़र् में दबे यहां के किसान आदमनी का कोई रास्ता न देखकर आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं। अपने घरों के हालात देखकर किसानों के बच्चे तनाव में आ रहे। 10वीं-12वीं के बाद पढ़ाई छोड़कर मुंबई और पुणे में मजदूरी करने जा रहे हैँ। और कई बार आत्महत्या भी कर रहे। मराठवाड़ा में किसान परिवारों का संकट हद से गुजर चुका है। किसानों की दुर्दशा का असर वहां के खेतिहर मजदूरों पर भी पड़ रहा है। साल 2015-16 में किसान मित्र नेटवर्क नाम के संगठनों के समूह ने महाराष्ट्र के कई जिलों में एक्शन एड के साथ मिल कर एक सर्वे किया था। इस संगठन के नेता बताते हैं कि किसानों को कई बार मुआवजा तक नहीं मिलता। मिलता है तो बैंक लोन में काट लेते हैं। किसान का परिवार रोजमर्रा की जिंदगी में इतना संघर्ष करता है। वो तिल-तिल कर मरता है। किसान के ज्यादातर परिवारों के बच्चे उच्च शिक्षा नहीं पाते। पढ़ाई छोड़कर मजदूरी करते हैं। महिलाएं बच्चियां शोषण का शिकार होती हैं। कई बार बच्चे आत्महत्या तक कर लेते हैं। कई उन लड़कियों ने भी आत्महत्या की है, जिनके घरों में शादी के लिए खर्च का इंतजाम नहीं हो पा रहा था। आमतौर पर ऐसे परिणाम दूर से नजर नहीं आते हैं।
जिस महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई के भरोसे भारत 5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी के लक्ष्य का दावा कर रहा है उसी महाराष्ट्र में किसान और मजदूर की हालत बद से बदतर होती जा रही है। आम सुविधाएं तो दूर की बात है, इन्हें दो वक्त की रोटी के लिए एक से बढ़कर एक समझौता करना पड़ रहा है। हालात यह है किसी समय महाराष्ट्र की शान समझे जाने वाले मराठवाड़ा में किसानों ने देश के सभी राज्यों के क्षेत्रों से ज्यादा आत्महत्या की हैं। अब तो हालात इससे भी डरावने हो गये हैं। मराठावाड़ा में खेतों में काम करने वाली हजारों महिलाओं के गर्भाश्य निकलवा देने की बातें सामने आ रही हैं। ऐसा बताया जा रहा है कि महावारी के समय दिहाड़ी कटने की डर से इन महिलाओं पेट से अपने गर्भाश्य निकलवा दिये हैं।
महाराष्ट्र सरकार के एक मंत्री ने यह मुद्दा उठाया है। उन्होंने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है। दरअसल आर्थिक तंगी के चलते यहां महिलाएं पुरुषों के साथ खेतों पर काम करने के लिए जाती हैं। मासिक धर्म के दौरान छुट्टी लेने की वजह से इन महिलाओं की हर महीने 4-5 दिन की दिहाड़ी कट जाती थी। अपने पेट से गर्भाश्य निकालने वाली महिलाओं की संख्या लगभग 30,000 के आसपास बताई जा रही है। महाराष्ट्र की स्थिति अपने आप में अनोखी है। इसी प्रदेश की राजधानी में देश के समसे अधिक सम्पन्न लोग रहते हैं।
देश के पूंजीपतियों से लेकर बालीवुड की हस्तियां महाराष्ट्र में ही निवास करती हैं। वहीं इसी महाराष्ट्र वह मराठावाड़ा क्षेत्र जो खेती के नाम से मशहूर है। जो क्षेत्र किसानों और मजदूर की अथाह मेहनत के बल पर इस न केवल इस प्रदेश बल्कि दूसरे प्रदेशों के लोगों का भी पेट भरता है उसी क्षेत्र के वही किसान-मजदूर मरने के लिए मजबूर हैं। स्थिति यह है कि देश में सबसे अधिक किसानों ने आत्महत्या मराठावाड़ा क्षेत्र में की है। हालात यहां तक पहुंच गये हंै कि अब तो किसानों के परिजन भी आत्महत्या करने लगे हैं। गत दिनों सूखे के लिए कुख्यात महाराष्ट्र के लातूर जिले में 17 साल के एक छात्र ने इसलिए फांसी लगा कर अपनी जान दे दी क्योंकि उसको आर्थिक तंगी के चलते फीस और खर्च के लिए पैसे नहीं मिल पा रहे थे।
गत महीने आई नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (हृष्टक्रक्च) की 2016 की 'एक्सिडेंटल डेथ एंड सुसाइडÓ की रिपोर्ट के अनुसार 2016 में देश में 11,379 किसानों ने आत्महत्या की है। इसमें से 3,661 किसान महाराष्ट्र से थे। अगर 2016 के ही आंकड़ों को आधार माने तो औसतन रोज 10 किसान महाराष्ट्र में मौत को गले लगा रहे हैं। जबकि बहुत सारे केस सरकार की किसान आत्महत्या की परिधि में नहीं आए, साथ ही किसानों के बेटे-बेटियों की मौत को कृषि संकट में गिना नहीं जाता। हाल यह है कि किसानों की आर्थिक तंगी को देखते हुए उनके बच्चे10वीं-12वीं के बाद पढ़ाई छोड़कर मुंबई और पुणे में मजदूरी करने के लिए चले जा रहे हैं। कुछ समय पहले लातूर जिले की चाकूर तहसील में एक छात्रा ने आत्महत्या की थी।
महाराष्ट्र के परभणी जिले के पाथरी में किसान ने आत्महत्या की। उसके तुरंत बाद उसके भाई की बेटी ने आत्महत्या कर ली और चि_ी में लिखा कि मुझे डर है कि कहीं आप भी चाचा की तरह मेरी शादी के खर्च के डर से आत्महत्या न कर लें। चुनावी घोषणा पत्र में तो सभी राजनीतिक दल ऐसा दर्शाते हैं कि जैसे सरकार बनने पर वह किसानों को माल लुटवा देंगे। सरकारें भी बजट में ऐसा दिखाती हैं कि जैसे वे किसानों को देश लूटवा दे रहे हैं। अब तक काफी संपन्न लोग किसानों को मिलने वाली सब्सिडी पर उंगली उठाने लगे हैं। जमीनी हकीकत यह है कि किसान की स्थिति उसके खेत और घर पर जाकर पता चलती है। देश को कितने आगे बढ़ने के दावे केंद्र व राज्य सरकारें कर ही कर रही हों पर किसान-मजदूर की हालत और खराब होती जा रही है। दरअसल कई वर्षांे से पानी की किल्लत झेल रहे मराठवाड़ा में ज्यादातर किसानों के पास लैंड होर्डिंग कम है। कज़र् में दबे यहां के किसान आदमनी का कोई रास्ता न देखकर आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं। अपने घरों के हालात देखकर किसानों के बच्चे तनाव में आ रहे। 10वीं-12वीं के बाद पढ़ाई छोड़कर मुंबई और पुणे में मजदूरी करने जा रहे हैँ। और कई बार आत्महत्या भी कर रहे। मराठवाड़ा में किसान परिवारों का संकट हद से गुजर चुका है। किसानों की दुर्दशा का असर वहां के खेतिहर मजदूरों पर भी पड़ रहा है। साल 2015-16 में किसान मित्र नेटवर्क नाम के संगठनों के समूह ने महाराष्ट्र के कई जिलों में एक्शन एड के साथ मिल कर एक सर्वे किया था। इस संगठन के नेता बताते हैं कि किसानों को कई बार मुआवजा तक नहीं मिलता। मिलता है तो बैंक लोन में काट लेते हैं। किसान का परिवार रोजमर्रा की जिंदगी में इतना संघर्ष करता है। वो तिल-तिल कर मरता है। किसान के ज्यादातर परिवारों के बच्चे उच्च शिक्षा नहीं पाते। पढ़ाई छोड़कर मजदूरी करते हैं। महिलाएं बच्चियां शोषण का शिकार होती हैं। कई बार बच्चे आत्महत्या तक कर लेते हैं। कई उन लड़कियों ने भी आत्महत्या की है, जिनके घरों में शादी के लिए खर्च का इंतजाम नहीं हो पा रहा था। आमतौर पर ऐसे परिणाम दूर से नजर नहीं आते हैं।