कल्पवास के साथ ही मेला क्षेत्र में हवन-यज्ञ शुरू


प्रयागराज,13 जनवरी (वार्ता) पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त: सलिला स्वरूप में प्रवाहित सरस्वती के विस्तीर्ण रेती पर चल रहे “माघ मेला” क्षेत्र में कल्पवास के साथ ही तम्बुओं के आध्यात्मिक शिविरों में हवन यज्ञ की शुरुआत हो गई है।

मेला में कहीं गोस्वामी तुलसीदास के रामायण का सुंदरकांड पाठ और वेदपाठ चल रहा है तो कहीं शिविर में सामूहिक मंत्रजाप कर देवी देवताओं का आह्वान किया जा रहा है। संन्यासियों का मानना है कि हवन, यज्ञ और मंत्रजाप होते ही देव प्रसन्न होकर बस जाते हैं। इससे नकारात्मक ऊर्जा का क्षरण होकर जनकल्याण होता है। सांसारिक जीवन में शांति और परिवार में सुख समृद्धि निरंतर वृद्धि भी होती है।

श्रीरामचरित मानस की पंक्तियों 'देव दनुज किन्नर नर श्रेणी, सादर मज्जहि सकल त्रिवेणी' की व्याख्या करते हुए शिव योगी मौनी ने कहा कि हवन यज्ञ और मंत्र जाप की शक्ति इन सभी को एक स्थान पर वास कराती है। यज्ञ से वृद्धि होती है, वृष्टि से धरती और किसान खुशहाल होते हैं। यज्ञ, दान और तप, तीनों ही श्रेष्ठ कर्म हैं।