नयी दिल्ली 23 जनवरी(वार्ता)। सोशल परिवर्तन क्षेत्र में काम करने वाले संगठन फोरम फाॅर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट एंड रिसर्च (एफआईडीआर) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि देश के पांच राज्यों में खनन गतिविधियाें पर लगायी रोक से वहां न:न सिर्फ आजीविका प्रभावित हुयी बल्कि सामाजिक स्तर पर विपरीत प्रभाव देखा जा रहा है।
एफआईडीआर ने इस संबंध में पांच बड़े खनन वाले प्रदेशों में सर्वेक्षण के आधार पर तैयार रिपोर्ट गुरूवार जारी की। विभिन्न राज्यों में खनन पर रोक तथा प्रतिबंधों के कारण लोगों की आजीविका पर पड़ा असर इस अध्ययन में सामने आया है। सामाजिक तानाबाना के प्रभावित होने की आशंका जततो हुये कहा गया है कि देशभर में खनन पर निर्भर लाखों लोगों की आजीविका का संकट है।
इसमें कहा गया है कि गोवा में खनन प्रतिबंध ने सामाजिक ताने-बाने पर गहरा दुष्प्रभाव डाला है। खनन रुकने से आजीविका पर आए संकट के कारण पूरे समाज की शांति एवं समृद्धि पर असर पड़ा है। गोवा और कर्नाटक दोनों राज्यों में काफी हद तक एक जैसी स्थिति है। ‘माइनिंग, ए प्रूडेंट पर्सपेक्टिव’ शीेर्षक से जारी इस रिपोर्ट में खनन से जुड़े पांच राज्यों गोवा, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और कर्नाटक को शामिल किया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक खनन पर प्रतिबंध से केवल खनन पर निर्भर परिवारों पर ही नहीं बल्कि उन परिवारों पर भी दुष्प्रभाव पड़ा है, जिनकी आजीविका किसी स्तर पर इससे जुड़ी है। प्रतिबंध के बाद से घरेलू आय आधी से भी कम रह गई है, जिससे बेरोजगारी एवं वित्तीय संकट के कारण बढ़े तनाव के चलते घरेलू हिंसा के मामले भी बढ़े हैं। खनन बंद करने के नीतिगत निर्णय से सबसे ज्यादा महिलाएं एवं बच्चे प्रभावित हुए हैं।
इसमें शामिल 70 प्रतिशत लोगों ने माना कि खनन से उन्हें रोजगार मिला था लेकिन आज ये रोजगार खत्म हो गए हैं। 65 प्रतिशत ने माना कि उनका परिवार गहरे तनाव में है और कर्ज लेकर नहीं चुका पाने तथा कर्जदाताओं के उत्पीड़न तथा मद्यपान एवं अन्य सामाजिक बुराइयों से पीड़ित है। 27 प्रतिशत ने कहा कि आजीविका पर संकट के कारण मानसिक अस्थिरता का सामना करना पड़ रहा है। इस तरह की प्रतिक्रिया सबसे ज्यादा गोवा से सामने आई।
इसमें कहा गया है कि गोवा में खनन प्रतिबंध ने सामाजिक ताने-बाने पर गहरा दुष्प्रभाव डाला है। खनन रुकने से आजीविका पर आए संकट के कारण पूरे समाज की शांति एवं समृद्धि पर असर पड़ा है। गोवा और कर्नाटक दोनों राज्यों में काफी हद तक एक जैसी स्थिति है। ‘माइनिंग, ए प्रूडेंट पर्सपेक्टिव’ शीेर्षक से जारी इस रिपोर्ट में खनन से जुड़े पांच राज्यों गोवा, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और कर्नाटक को शामिल किया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक खनन पर प्रतिबंध से केवल खनन पर निर्भर परिवारों पर ही नहीं बल्कि उन परिवारों पर भी दुष्प्रभाव पड़ा है, जिनकी आजीविका किसी स्तर पर इससे जुड़ी है। प्रतिबंध के बाद से घरेलू आय आधी से भी कम रह गई है, जिससे बेरोजगारी एवं वित्तीय संकट के कारण बढ़े तनाव के चलते घरेलू हिंसा के मामले भी बढ़े हैं। खनन बंद करने के नीतिगत निर्णय से सबसे ज्यादा महिलाएं एवं बच्चे प्रभावित हुए हैं।
इसमें शामिल 70 प्रतिशत लोगों ने माना कि खनन से उन्हें रोजगार मिला था लेकिन आज ये रोजगार खत्म हो गए हैं। 65 प्रतिशत ने माना कि उनका परिवार गहरे तनाव में है और कर्ज लेकर नहीं चुका पाने तथा कर्जदाताओं के उत्पीड़न तथा मद्यपान एवं अन्य सामाजिक बुराइयों से पीड़ित है। 27 प्रतिशत ने कहा कि आजीविका पर संकट के कारण मानसिक अस्थिरता का सामना करना पड़ रहा है। इस तरह की प्रतिक्रिया सबसे ज्यादा गोवा से सामने आई।
खनन पर रोक से आजीविका तथा सामाजिक क्षेत्र पर असर: एफआईडीआर