कृष्णानगर रहा है भाजपा का गढ़


नयी दिल्ली, 05 जनवरी (वार्ता) पूर्वी दिल्ली के पुराने इलाकों में से एक कृष्णानगर भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता है जिसे वह पिछले चुनाव में आम आदमी पार्टी की आंधी में ढहने से बचा नहीं पायी थी।

वर्ष 1993 में विधानसभा गठन के बाद से 2013 तक हुए पांच चुनावों में भाजपा का कृष्णानगर सीट पर लगातार कब्जा रहा और उसके आगे किसी की दाल नहीं गली लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी(आप) ने इस सीट को हथिया लिया।

पेशे से डॉक्टर और इलाके में ही रहने वाले वर्तमान केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री हर्षवर्धन ने 1993 में भाजपा की ओर से इस सीट से चुनाव लड़ा और जोरदार जीत हासिल की। चुनावों में भाजपा को बहुमत मिला और मदनलाल खुराना की सरकार में डॉ हर्षवर्धन को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। उनकी अगुवाई में देश में पोलियो उन्मूलन का अभियान चला और भारत इस बीमारी से मुक्त हुआ। कांग्रेस भी यहां से जीत के लिए हमेशा प्रयासरत रही और उसने हर चुनाव में प्रत्याशी बदला लेकिन डॉ हर्षवर्धन की लोकप्रियता के सामने उसकी एक नहीं चली।

पिछले विधानसभा चुनाव से पहले दिल्ली में सामान्यत: भाजपा और कांग्रेस में आमने- सामने की टक्कर होती थी लेकिन गत चुनाव में आप के उतरने के बाद मुकाबला त्रिकोणीय हो गया था। वर्ष 1993 में पहले चुनाव में डॉ हर्षवर्धन ने कांग्रेस के बलविंदर सिंह को 12419 मतों से शिकस्त दी थी । इसके बाद 1998 में डाॅ हर्षवर्धन के सामने कांग्रेस ने एस एन मिश्रा को उतारा लेकिन वह भी कांग्रेस की नैय्या पार नहीं लगा पाये और 6610 वोट से शिकस्त झेली। इसके बाद 2003 के चुनाव में कांग्रेस ने नरेंद्र कुमार को उतारा किंतु वह भी डा. हर्षवर्धन के सामने टिक नहीं पाए और भाजपा यहां 14073 मतों से जीती।

वर्ष 2008 में परिसीमन के बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी डॉ हर्षवर्धन ने सीट भाजपा की झोली में डाली। इस बार उनका मुकाबला कांग्रेस की दीपिका खुल्लर से हुआ और वह केवल 3204 वोटों से ही जीत हासिल कर पाए।

दिल्ली में 1998 के बाद से लगातार तीन बार सत्ता से बाहर रही भाजपा ने 2013 में डॉ हर्षवर्धन को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया। इस बार उनका मुकाबला उनके ही सहयोगी और पूर्व भाजपा पार्षद वी के मोंगा से हुआ। मोंगा ने भाजपा छोड़कर कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन डाॅ हर्षवर्धन के सामने टिक नहीं पाये और 43150 मतों के भारी अंतर से पराजय झेली। इस चुनाव में भाजपा दिल्ली की सत्ता में वापस आते-आते रह गई। उसके सदस्यों की संख्या 32 पर टिक गई। पहली बार उतरी आप ने 29 सीटें जीतीं और कांग्रेस के आठ विधायकों के सहयोग से अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में सरकार बनाई। लोकपाल गठन को लेकर हुए मतभेद की वजह से केजरीवाल ने 49 दिन के बाद इस्तीफा दे दिया और दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाया गया।

वर्ष 2013 के बाद डाॅ हर्षवर्धन केंद्र की राजनीति में चले गए और नरेंद्र मोदी की अगुवाई में 2014 के आम चुनाव में चांदनी चौक सीट से लड़े और जीते। इसके बाद 2019 में भी वह फिर इसी सीट से लोकसभा पहुंचे।

पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के हाथ से यह सीट निकल गई। भाजपा ने देश की पुलिस सेवा की पहली अधिकारी किरण बेदी को इस सीट से मैदान में उतारा। सुश्री बेदी भाजपा की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार भी थीं किंतु वह इस सीट को भाजपा की झोली में भी नहीं डाल सकीं और पांच बार से लगातार जीतती आ रही पार्टी के हाथ से यह सीट निकल गई। आप ने वकील एस के बग्गा को मैदान में उतारा था। उन्होंने सुश्री बेदी को 2277 वोटों के अंतर से पराजित किया। सुश्री बेदी को 63642 वोट मिले जबकि श्री बग्गा 65919 वोट पाकर विजयी रहे। कांग्रेस के उम्मीदवार बंसीलाल की जमानत जब्त हो गई थी।