कुशीनगर में बर्षो से बंधो पर बिताते रात: कोई पूछने वाले नहीं

कुशीनगर 07 जनवरी  उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में गंडक नदी की कटान के चलते बेघर होकर पिछले कई वर्षों से बंधों पर शरण लिए लोगों के लिए ठंडक की रात बितानी तकलीफदेह है।
दिन तो किसी तरह गुजार जाता है लेकिन रात नहीं कटती। कटान व चुनाव के वक्त दरियादिली दिखाने वाले नेता या सामाजिक संगठन भी अब खोज-खबर नहीं ले रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में गंडक नदी की कटान के चलते पिपराघाट के फल टोला, नान्हू टोला और उपाध्याय टोला का अस्तित्व समाप्त हो चुका है। दहारी टोला और तवकल टोला भी आंशिक रूप से प्रभावित है। यही हाल अहिरौलीदान का है। बैरिया टोला व कंचन टोला पूरी तरह से तो कचहरी टोला, खैरखुटा, मदुरही और नोनिया पट्टी आंशिक रूप से कट चुका है, जिनके मकान नदी की कटान में बह गए वे लोग एपी बांध पर शरण लिए हैं।
किसी ने झोपड़ी डाल ली है तो कुछ का वक्त अब भी प्लास्टिक के नीचे कट रहा है। ऐसे लोगों के लिए ठंड का मौसम बेहद कष्टकारक है। इन लोगों की एक मजबूरी यह भी है कि इनका खेत नदी के दूसरी तरफ है। जीवन यापन के लिए खेती पर ही निर्भर हैं। लिहाजा इलाका भी नहीं छोड़ सकते। बंधे पर झोपड़ी डालकर जीवन बिता रहे महातम यादव, कुसुम देवी, राजकुमार, सुनरपति देवी का कहना है कि बरसात के दिन में प्रशासन के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता भी खूब पूछते हैं, लेकिन जाड़े में किसी ने खोज खबर नहीं ली।