नागरिकता संशोधन कानून पर अभिभाषण के दौरान व्यवधान

नयी दिल्ली 31 जनवरी (वार्ता)। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण के दौरान संसद के केंद्रीय कक्ष में विपक्षी दलों ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ बजट सत्र के पहले ही दिन आज अपने तीखे तेवर दिखाते हुए सरकार को जता दिया कि इस मुद्दे को विपक्ष जोर शोर से उठाएगा और इसके खिलाफ हो रहे देशव्यापी प्रदर्शनों को देखते हुए इसे वापस लेने के लिए सरकार पर दबाव बनाएंगे।



विपक्ष इस मुद्दे पर किस कदर आक्रामक है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि राष्ट्रपति ने जब दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संसद के केंद्रीय कक्ष में संबोधित करना शुरू किया ठीक उसी समय समाजवादी पार्टी के शफीकर रहमान बर्क ने नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करते हुए व्यवधान पैदा कर दिया। उसके बाद विपक्षी दलों के सदस्य इस मुद्दे पर अभिभाषण के बीच में एकाध वाक्यों की टिप्पणियां कर सदन का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते रहे।



कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद, लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी, पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी इस कानून का विरोध करते हुए उनके बैठने के लिए निर्धारित आगे की पंक्ति पर नहीं बैठे। ये सभी नेता एक साथ छठी पंक्ति में बैठे थे। कांग्रेस तथा अन्य कई विपक्षी दलों के सदस्य उनके आसपास बैठकर इस मुद्दे को लेकर ज्यादा व्यवधान पैदा कर रहे थे।



राष्ट्रपति ने अभिभाषण के दौरान जैसे ही नागरिकता संशोधन कानून का जिक्र किया तो सत्ता पक्ष के सदस्यों ने मेजें थपथपाकर इसका जोरदार स्वागत किया जिससे काफी देर तक पूरा हॉल गूंजता रहा। इस दौरान राष्ट्रपति ने अपना भाषण आगे पढने का तीन बार प्रयास किया लेकिन मेजों पर थपथपाहट की गूंज के कारण वह भाषण फिर से शुरू नहीं कर पाये। इसी बीच विपक्ष के कई सदस्यों ने जवाब में शोर मचाना शुरू कर दिया जिसके कारण केंद्रीय कक्ष में कुछ देर तक अजीबोगरीब स्थिति पैदा हो गयी।श्री कोविंद ने संसद की संयुक्त बैठक में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का स्मरण करते हुए संसद में पिछले दिनों पारित नागरिकता संशोधन कानून का जिक्र किया जिसमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगलादेश में धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसंबर 2014 तक भारत आये हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी समुदाय के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है। अभिभाषण में इसके उल्लेख पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत पूरे सत्ता पक्ष ने जोरदार ढँग से मेज थपथपाकर इसका स्वागत किया।
राष्ट्रपति के अभिभाषण के बीच तृणमूल कांग्रेस तथा समाजवादी पार्टी सहित कुछ अन्य दलों के कईं सदस्य अपनी सीटों पर खड़े हो गये और हाथों में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) लिखे पर्चे और तखियां टांगकर चुपचाप अपनी जगह पर खड़े हो गये। ये सभी सदस्य एक ही पंक्ति में बैठे हुए थे और मोटे मोटे अक्षरों में एनआरसी लिखे पोस्टर और तख्तियां लेकर अपनी जगह पर चुपचाप खड़े हो गये।
अभिभाषण समाप्त होने के बाद राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने संसद परिसर में संवाददाताओ सम्मेलन में कहा कि नागरिकता (संशोधन) कानून (सीएए, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर), राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को लेकर देश भर के लोगों में गुस्सा है और आंदोलन चल रहा है लेकिन सरकार इस मुद्दे पर बात करने की बजाय ध्रुवीकरण की राजनीति कर रही है।
उन्होंने कहा कि देश की गिरती आर्थिक स्थिति, बेरोजगारी समेत तमाम मुद्दों पर कांग्रेस समेत 14 विपक्षी दलों ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा के समक्ष सुबह साढ़े नौ बजे हाथों में काली पट्टी बांधकर प्रदर्शन किया। इसके खिलाफ सभी धर्म जाति और प्रांतों के लोग शामिल हैं।श्री आजाद ने कहा कि कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी समेत 14 विपक्षी दलों के सदस्य राष्ट्रपति के अभिभाषण के दौरान विरोध स्वरूप अपनी सीटों से हटकर पीछे बैठे। अभिभाषण में कई ऐसी चीजों को शामिल किया गया जो पांच या चार साल पुरानी थी। बेरोजगारी, गरीबी, बेकारी और महंगाई पर उनके भाषण में कुछ नहीं मिला है। सकल घरेलू उत्पाद जिस तेजी से गिर रही है, रुपया तेजी से गिर रहा है उसके बारे कोई चर्चा नहीं की गयी।
माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि देश में जो हालात पैदा हो गये है, वह बहुत ही चिंतनीय है। लोगों से बातचीत करने के बजाय सरकार हिंसा करवा रही है। जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में पुलिस के सामने कल जिस प्रकार से गोली चलायी गयी वह बहुत ही दुखद है। सरकार द्वारा हिंसा को बढ़ावा दिया जा रहा है। हिंदू सेना ने शाहीन बाग में प्रदर्शन कर रहे लोगों के खिलाफ युद्ध छेड़ने की बात कर रही है। देश की अर्थव्यवस्था की दयनीय हालात है और दूसरी तरफ सरकार प्रायोजित हिंसा को बढ़ावा दिया जा रहा है।
राजद की नेता मीसा भारती ने कहा कि सीएए, एनपीआर और एनआरसी के खिलाफ देशभर में सभी धर्मों वर्गों और जातियों के लोग आंदोलन कर रहे हैं लेकिन सरकार उसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रही है।