नयी दिल्ली, 10 फरवरी (वार्ता)। उच्चतम न्यायालय ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन कानून 2018 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए केंद्र सरकार के संशोधन को सही माना है। न्यायमूर्ति अरुण मिश्र, न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट की पीठ ने संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सोमवार को यह फैसला सुनाया। खंडपीठ ने पिछले साल अक्टूबर में इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। यह कानून एससी-एसटी एक्ट के तहत गिरफ्तार किसी आरोपी को अग्रिम जमानत देने के प्रावधानों पर रोक लगाता है। शीर्ष अदालत ने 20 मार्च 2018 को अपने फैसले में कहा था कि एससी-एसटी एक्ट के तहत बिना जांच के गिरफ्तारी नहीं हो सकती है। इस पर केंद्र सरकार ने न्यायालय के दो जजों की बेंच के इस फैसले पर असहमति जताते हुए पुनर्विचार याचिका दायर की थी। दरअसल, एससी-एसटी कानून, 1989 के हो रहे दुरुपयोग के मद्देनजर शीर्ष अदालत ने इस कानून के तहत मिलने वाली शिकायत पर स्वत: प्राथमिकी दायर करने पर और गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। इसके बाद संसद में न्यायालय के आदेश को पलटने के लिए कानून में संशोधन किया गया था, जिसे फिर से चुनौती दी गई थी।
एससी-एसटी एक्ट पर न्यायालय के फैसले के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए थे। खासतौर से दलित समुदाय के लोगों ने जगह-जगह बाजार बंद कराकर प्रदर्शन किए थे जिसके बाद सरकार ने इस फैसले को बदलने का फैसला लिया था।